सरदार पूर्ण सिंह का जीवन परिचय - Sardar Puran Singh Biography In Hindi
सरदार पूर्णसिंह, द्विवेदी युग के श्रेष्ठ तथा सफल निबन्धकार हैं। अध्यापक पूर्णसिंह हिन्दी-गद्य साहित्य के प्रचार-प्रसार के अद्वितीय उत्थान के निबन्धकार हैं। उन्होंने भावात्मक एवं लाक्षणिक शैली के निबन्धों की रचना करके इस क्षेत्र में एक नयी परम्परा का सूत्रपात किया। आपने मात्र छ: निबन्ध लिखकर ही हिन्दी के निबन्धकारों में अपना उच्चकोटि का स्थान बनाया।
जीवन परिचय- सरदार पूर्णसिंह का जन्म सन् 1881 ई० में ऐबटाबाद (पंजाब) जिले के सलहड़ नामक ग्राम में हुआ था। अपनी माता के सात्विक और धर्मपरायण जीवन ने बालक पूर्णसिंह को अति प्रभावित किया। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा रावलपिण्डी में हुई। हाईस्कूल करने के बाद आप लाहौर चले गए। लाहौर से इण्टरमीडिएट-परीक्षा उत्तीर्ण करके आप रसायनशास्त्र का विशेष अध्ययन करने हेतु जापान चले गये।
वहाॅं आपकी भेंट स्वामी रामतीर्थ से हुई। स्वामीजी से प्रभावित होकर आपने संन्यास ले लिया और उन्हीं के साथ भारत लौट आये। बाद में आपने अपनी गृहस्थी भी बसाई और देहरादून के फोरेस्ट इंस्टीट्यूट में नौकरी कर ली। स्थिति अनुकूल न होने के कारण आपने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और ग्वालियर चले आये। ग्वालियर में भी आपका मन नहीं लगा अत: आप पंजाब चले आये, खेती-बाड़ी करने लगे। मार्च, सन् 1931ई० में मात्र 50 वर्ष की आयु में ही उनका स्वर्गवास हो गया।
सरदार पूर्णसिंह की मातृभाषा पंजाबी थी परन्तु राष्ट्र-भाषा हिन्दी से आपको विशेष स्नेह था; अतः आपने हिन्दी में उच्चकोटि के निबन्धों की रचना की। आपने अपनी मौलिक विचारधारा एवं व्यंजनापूर्ण शैली में केवल छ: निबन्धों की रचना की। निबन्ध लेखन हेतु आपने मुख्य रूप से नैतिक विषयों को ही लिया। आपने जो भी लिखा है वह भाव और अनुभूति की दृष्टि से लिखा है जो सजीव एवं लोकमंगल की भावना से परिपूर्ण है।
आपकी गद्य रचनाऍं बहुत कम हैं किन्तु अतिविशिष्ट हैं।
इनके प्रमुख निबन्ध इस प्रकार हैं-
- मजदूरी और प्रेम
- आचरण की सभ्यता
- सच्ची वीरता
- अमेरिका का मस्त योगी बाॅल्ट हिटमैन
- कन्यादान
- पवित्रता।
भाषा-शैली
सरदार पूर्णसिंह की भाषागत विशेषताऍं
सरदार पूर्णसिंह की भाषा शुद्ध एवं साहित्यिक खड़ी बोली है। आपके साहित्य में उर्दू-फारसी के शब्दों का प्रयोग प्रचुर मात्रा में हुआ है। आपने अपने निबन्धों में विदेशी भाषा के शब्दों का प्रयोग किया है। आपकी भाषा में एक गति है, प्रवाह है, सौन्दर्य है एवं हृदय और मस्तिष्क को बाॅंध लेने वाला चुंबकीय आकर्षण है।
आपने संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रचुर प्रयोग किया है तथा बिना झिझक अंग्रेजी शब्दावली का प्रयोग किया है। कहीं-कहीं तो पूरे वाक्य ही आपने उर्दू में लिखे हैं। मुहावरों और कहावतों के प्रयोग से आपकी भाषा में प्रवाह आ गया है। आपकी भाषा, विषय तथा भावों के अनुकूल है। उसमें लक्षणा तथा व्यंजना शब्द-शक्तियों का चरम उत्कर्ष देखा जा सकता है। सरदार पूर्णसिंह की भाषा शुद्ध साहित्यिक परिमार्जित भाषा है।
सरदार पूर्णसिंह की शैलीगत विशेषताऍं
आपकी शैली अनेक दृष्टियों से निजी शैली है। आपके विचार भावुकता से ओतप्रोत हैं- कहीं ये कवित्व की ओर मुड़ जाते हैं और कहीं उपदेशक के समान प्रतीत होते हैं। आपके निबन्धों में भावों की गतिशीलता मिलती है, उसी के अनुसार आपकी शैली भी परिवर्तित हो जाती है। उनकी शैली के निम्नलिखित रूप हैं।
- भावात्मक शैली- पूर्णसिंह जी भाव-विभोर होकर अपनी बात कहते थे। यही आपकी वास्तविक शैली है।
- विचारात्मक शैली- गम्भीर विचार विवेचन करते समय आपकी शैली का विचारात्मक रूप दिखायी पड़ता है।
- वर्णनात्मक शैली- सामान्य वर्णनों तथा प्रसंगों आदि में हमें इस वर्णन शैली के दर्शन होते हैं। इसकी भाषा सरल है तथा वाक्य छोटे-छोटे हैं।
- व्यंग्यात्मक शैली- पूर्णसिंह जी कभी-कभी करारा व्यंग्य करते हैं। आपके व्यंग्य बड़े चुटीले एवं तेज होते हैं। अध्यापक पूर्णसिंह की शैली की लाक्षणिकता हिन्दी गद्य के लिए नयी देन है। आपकी इस शैली में रमणीयता, रोचकता एवं अभिव्यंजना का कौशल सर्वत्र दिखाई पड़ता है।
सरदार पूर्णसिंह हिन्दी के एक समर्थ निबन्धकार हैं। हिन्दी गद्य-साहित्य में विशिष्ट स्थान है। भावात्मक शैली के लाक्षणिकता से परिपूर्ण सशक्त निबन्धों के वह प्रथम रचयिता हैं। सच्चे अर्थों में उन्हें एक आत्मव्यंजक निबन्धकार ही कहा जाएगा।

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