गिरिजा कुमार माथुर का जीवन परिचय - Girija Kumar Mathur Biography In Hindi
जीवन परिचय - गिरिजाकुमार माथुर का जन्म अशोकनगर मध्य प्रदेश नामक स्थान पर सन 1919 ई॰ में श्री देवी शरण किया हुआ था। आप की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई। इसके बाद सन 1934 ई॰ में अपने हाईस्कूल परीक्षा झांसी से उत्तीर्ण की। इसके बाद लखनऊ विश्वविद्यालय से आपने अंग्रेजी साहित्य में एम ए तथा एलएलबी की परीक्षा उत्तीर्ण की। प्रसिद्ध कवित्री शकुंत माथुर से आप का विवाह हुआ। कुछ समय बाद उन्हें दिल्ली सचिवालय में नौकरी मिल गई। इसके बाद ऑल इंडिया रेडियो में कार्य किया फुल आकाशवाणी छोड़कर संयुक्त राष्ट्र अमेरिका चली गई। वहाॅं 2 वर्ष कार्य करने की बाद 1943 ई॰ में आकाशवाणी लखनऊ में उप निदेशक के रूप में आप पुनः नियुक्त हुए।
कृतित्व एवं व्यक्तित्व
श्री गिरिजाकुमार माथुर की रचनाएं इस प्रकार हैं-
काव्य- मंजिल नाश और निर्माण धूप के धान सिला पंख चमकीले जो बांध नहीं सका आदि।
आपने एकाकी नाटक आलोचना आदि का भी श्रजन किया। गिरिजाकुमार माथुर उत्तर छायावादी संस्कारों से प्रारंभ होकर अप्रतिबंध सामाजिकता एवं प्रयोग धार्मिकता से निकलकर नई कविता की जीवंतता एवं सामर्थ्य से जुड़कर नई कविता की समर्थ कवियों में है।
साहित्यिक योगदान
श्री गिरिजा कुमार माथुर का ध्यान सदा शिल्प विधान पर रहा है। शिल्प प्रयोगों की दृष्टि से रंग योजना ध्वनि संगीत तथा नए उपनाम आदि में माथुर ने काव्य को नया मोड़ दिया है। आपकी भाषा शुद्ध साहित्य खड़ी बोली है जिसमें आंचलिक जनपदीय शब्द योजना का प्रयोग हुआ है जो स्वाभाविक चित्रण हेतु आवश्यक है। कवि ने तद्भव एवं देशज शब्दों का सटीक एवं खुलकर प्रयोग किया है जैसे डोरी सांग कांवर चकमक बिजरी खरेरी सोनाली सुन चंद्रिया मटीली छुवन धीरज दो आज आदि। साधारण व्यवहारिक भाषा में अर्थ एवं नाथ सौंदर्य की असाधारण पहचान कभी माथुर की विशेषता है। अनेक स्थलों पर ग्रामीण शब्द प्रयोग अखरता है। ठाक अपनी कविता में जनपदीय शब्द एवं लोक जीवन की छाया उल्लेखनीय है। उनके काम में अर्थ सौंदर्य नाथ सौंदर्य एवं प्रगति तत्वों की श्रेष्ठता निहित है। नए उपनाम ओं की प्रयोग में माथुर जी सिद्धहस्त कवि हैं। कभी प्रतीकों से संप्रेषण को सशक्त बनाता है उनके प्रति पौराणिक ऐतिहासिक प्राकृतिक वैज्ञानिक तथा योगिक हैं। इन के साथ मनोवैज्ञानिक प्रतीक भी मिलते हैं। माथुर कीट्स की विलंब योजना से प्रभावित प्रतीत होते हैं।
कवि श्री माथुर रूमानी गीत आत्मकथा प्रखर सामाजिक प्रयोग शीलता वैज्ञानिक चेतना आधुनिक भागवत तथा मानव वादी भाग भूमि की सीढ़ियां तय कर चुकी है। कुछ समीक्षकों का आशिफ है कि माथुर की कॉपी में स्थितियों से टकराने की ताकत ज्यादा नहीं रही इसीलिए भी प्राकृतिक दृश्यों की शाब्दिक पच्चीकारी करने में लग जाते हैं या फिर मध्यवर्गीय जिंदगी की तस्वीर खींचने में। ऐसा नहीं है कि वह जीवन तथा जगत की हलचल ओ से उद्वेलित हैं। संवेदना एवं शिल्प की दृष्टि से वे हिंदी की नई कविता धारा का समग्र रूप से प्रतिनिधित्व करते हैं।

Comments
Post a Comment