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Showing posts from July, 2022

प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी का जीवन परिचय - Pro Ji Sundar Reddy Biography In Hindi

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(जीवनकाल सन् 1919 ई॰ से सन् 2005 ई॰) प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी एक सर्वश्रेष्ठ बेचारा सम आलोचक एवं निबन्धकार हैं। आप दक्षिण भारतीय हिन्दी विद्यमान है। आपका व्यक्तित्व एवं कृतित्व अति प्रभावशाली है। श्री रेड्डी की हिन्दी साहित्य सेवा साधना एवं निष्ठा सराहनीय है। आपने हिन्दी और तेलुगु साहित्य की तुलनात्मक अध्ययन पर प्रभुत्व कार्य किया है। हिन्दी को विकसित तथा प्रगतिशाली बनाने के लिए साहित्य में आपका योगदान सराहनीय है आपकी भाषा शैली किसी भी हिन्दी लेखक के समतुल्य रखी जा सकती है। जीवन परिचय- प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी का जन्म 10 अप्रैल सन् 1919 ई॰ में दक्षिण भारत में हुआ था। हिन्दी के अतिरिक्त आपका अधिकार तमिल तथा मलयालम भाषा ऊपर भी था। आपने 32 वर्षों से भी अधिक समय तक आंध्र विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग अध्यक्ष पद को सुशोभित किया। आपने हिन्दी और तेलुगु साहित्य की तुलनात्मक अध्ययन पर काफी कार्य किया है। आपकी अनेक निबन्ध हिन्दी अंग्रेजी एवं तेलुगु पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। तेलुगु भाषी होते हुए भी हिन्दी भाषा में रचना करके आपने एक प्रोत्साहन एवं प्रेरणादाई उदाहरण प्रस्तुत किया है। आप...

गिरिजा कुमार माथुर का जीवन परिचय - Girija Kumar Mathur Biography In Hindi

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(जीवनकाल सन् 1919 ई॰ से सन् 1994 ई॰) जीवन परिचय -  गिरिजाकुमार माथुर का जन्म अशोकनगर मध्य प्रदेश नामक स्थान पर सन 1919 ई॰ में श्री देवी शरण किया हुआ था। आप की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई। इसके बाद सन 1934 ई॰ में अपने हाईस्कूल परीक्षा झांसी से उत्तीर्ण की। इसके बाद लखनऊ विश्वविद्यालय से आपने अंग्रेजी साहित्य में एम ए तथा एलएलबी की परीक्षा उत्तीर्ण की। प्रसिद्ध कवित्री शकुंत माथुर से आप का विवाह हुआ। कुछ समय बाद उन्हें दिल्ली सचिवालय में नौकरी मिल गई। इसके बाद ऑल इंडिया रेडियो में कार्य किया फुल आकाशवाणी छोड़कर संयुक्त राष्ट्र अमेरिका चली गई। वहाॅं 2 वर्ष कार्य करने की बाद 1943 ई॰ में आकाशवाणी लखनऊ में उप निदेशक के रूप में आप पुनः नियुक्त हुए। कृतित्व एवं व्यक्तित्व श्री गिरिजाकुमार माथुर की रचनाएं इस प्रकार हैं- काव्य- मंजिल नाश और निर्माण धूप के धान सिला पंख चमकीले जो बांध नहीं सका आदि। आपने एकाकी नाटक आलोचना आदि का भी श्रजन किया। गिरिजाकुमार माथुर उत्तर छायावादी संस्कारों से प्रारंभ होकर अप्रतिबंध सामाजिकता एवं प्रयोग धार्मिकता से निकलकर नई कविता की जीवंतता एवं सामर्थ्य से...