सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' का जीवन परिचय - Suryakant Tripathi Nirala Biography In Hindi

जीवन परिचय -- महात्मा कबीर के बाद हिन्दी साहित्य-जगत् मे यदि किसी फक्कड़ और निर्भीक कवि का जन्म हुआ तो वे थे-महाकवि निराला। निराला के काव्य में कबीर का फक्कड़पन और निर्भीकता, सूफियों का सादापन, सूर-तुलसी की प्रतिभा और प्रसाद की सौन्दर्य-चेतना साकार हो उठी है। वे एक ऐसे विद्रोही कवि थे, जिन्होंने निर्भीकता के साथ अनेक रूढ़ियों को तोड़ डाला और काव्य के क्षेत्र में अपने नवीन प्रयोगों से युगान्तरकारी परिवर्तन किए।

मुक्त-छन्द के प्रवत्तक महाकवि निराला का जन्म सन् 1897 ई॰ (संवत् 1954) में, बंगाल प्रान्त के मेदिनीपुर जिले में हुआ था। इनके पिता का नाम पं॰ रामसहाय त्रिपाठी था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा राज्य के हाईस्कूल मे हुई। इनकी बचपन से ही घुड़सवारी, कुश्ती और खेती का बड़ा शौक था। बालक सूर्यकान्त के सिर से माता-पिता का साया अल्पायु में ही उठ गया था। निरालाजी को बाँग्ला और हिन्दी भाषाओं का अच्छा ज्ञान था। इन्होंने संस्कृत और हिन्दी-साहित्य का भी अध्ययन किया। भारतीय दर्शन में इनकी पर्याप्त रूचि थी।

निरालाजी का पारिवारिक जीवन अत्यन्त कष्टमय रहा। एक पुत्र और एक पुत्री को जन्म देकर इनकी पत्नी स्वर्ग सिधार गई। इसी समय उनका परिचय आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी से हुआ। इनके सहयोग से निरालाजी ने 'समन्वय' और 'मतवाला' पत्रिकाओं का सम्पादन किया।
अपने उदार स्वभाव के कारण निरालाजी को बार-बार आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। आर्थिक अभावों के बीच ही पुत्री सरोज का देहान्त हो गया। इस अवसादपूर्ण घटना से व्यथित होकर ही इन्होंने 'सरोज-स्मृति' नामक कविता लिखी। दु:ख और कष्ट से परिपूर्ण इनके व्यक्तित्व में अहं की मात्रा बहुत अधिक थी।
निरालाजी स्वामी रामकृष्ण परमहंस और विवेकानन्दजी से बहुत प्रभावित थे। इनकी कविताओं में छायावादी, रहस्यवादी और प्रगतिवादी विचारधाराओं का भरपूर समावेश हुआ है। सन् 1961 ई॰ (संवत् 2018) में निरालाजी की मृत्यु हो गई।


साहित्यिक व्यक्तित्व -- अपने युग की काव्य-परम्परा के प्रति प्रबल विद्रोह का भाव लेकर काव्य-रचना करनेवाले महाकवि निराला को हिन्दी काव्य-जगत् में एक विशिष्ट कवि के रूप में जाना जाता है। उन्होंने तत्कालीन काव्य-परम्परा पर आधारित छन्द एवं बिम्ब-विधान की उपेक्षा करके स्वच्छन्द एवं छन्द-मुक्त कविताओं की रचना प्रारम्भ की और नवीन बिम्ब-विधान एवं काव्य-चित्रों को प्रस्तुत किया। इसके फलस्वरूप निराला को तत्कालीन कवियों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा। सन् 1916 ई॰ में प्रकाशित इनका काव्य-संग्रह 'जुही की कली' उस युग के साहित्यवेत्ताओं के लिए एक चुनौती बनकर सामने आया। उसमें अपनाई गई छन्दमुक्तता एवं उसके प्रणय-चित्र तत्कालीन मान्यताओं के सर्वथा विपरीत थे। फलस्वरूप निराला को भारी विरोध का सामना करना पड़ा, किन्तु निराला ने सबकी उपेक्षा की और अपनी काव्य-प्रवृत्ति को ही महत्व देकर रचनाएँ लिखते रहे।

निराला ने विविध प्रकार के नवीन भावों एवं विचारों पर आधारित रचनाओं का सृजन किया। इन्होंने छन्द सम्बन्धी तत्कालीन नियमों को तोड़कर छन्दमुक्त रचनाएँ कीं और हिन्दी काव्य के क्षेत्र में एक नए शिल्प का सुत्रपात किया। वर्तमान युग की छन्दमुक्त कविताओं के सूत्रधार निराला ही थे।

अपने कवि-जीवन के प्रारम्भ में निराला ने 'रामकृष्ण मिशन, कलकत्ता' के द्वारा प्रकाशित पत्रिका 'समन्वय' का सम्पादन-भार सँभाला। तत्पश्चात् ये आचार्य द्विवेदीजी के सम्पर्क में आए और 'मतवाला' नामक पत्रिका के सम्पादक-मण्डल में सम्मिलित हो गए। इसके तीन वर्ष पश्चात् इन्होंने लखनऊ से प्रकाशित होनेवाली 'गंगा पुस्तक-माला' का सम्पादन प्रारम्भ किया एवं 'सुधा' नामक पत्रिका का सम्पादकीय लिखने लगे। अपनी स्वाभिमानी प्रवृत्ति के कारण निराला यहाँ भी सामंजस्य स्थापित नहीं कर सके और लखनऊ छोड़कर इलाहाबाद आ गए। अपना शेष जीवन इन्होंने इलाहाबाद में ही स्वतन्त्र रूप से काव्य-साधना करते हुए व्यतीत किया।

                                  रचनाएँ
सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न साहित्यकार थे। कविता के अतिरिक्त इन्होंने उपन्यास, कहानियाँ, निबन्ध, आलोचना और संस्मरण भी लिखे हैं। इनकी प्रमुख कृतियों का विवेचन इस प्रकार है-

(1) परिमल -- इस रचना में अन्याय और शोषण के प्रति तीव्र विद्रोह तथा निम्न वर्ग के प्रति गहरी सहानुभूति प्रकट की गई है।

(2) गीतिका -- इसकी मूल भावना श्रृंगारिक है, फिर भी बहुत-से गीतों में मधुरता के साथ आत्मनिवेदन का भाव भी व्यक्त हुआ है। इसके अतिरिक्त इस रचना में प्रकृति-वर्णन तथा देशप्रेम की भावना का चित्रण भी हुआ है।

(3) अनामिका -- इसमें संगृहीत रचनाएँ निराला के कलात्मक स्वभाव की परिचायक हैं।

(4) राम की शक्ति-पूजा -- इसमें कवि का ओज, पौरूष तथा छन्द-सौष्ठव प्रकट हुआ है।

(5) सरोज-स्मृति -- यह हिन्दी का सर्वश्रेष्ठ शोक-गीत है।

(6) अन्य रचनाएँ -- कुकुरमुत्ता, अणिमा, अपरा, बेला, नए पत्ते, आराधना, अर्चना आदि भी उनकी अन्य सुन्दर काव्य-रचनाएँ हैं।

(7) गद्य-रचनाएँ -- निरालाजी की कतिपय गद्य-रचनाएँ इस प्रकार हैं- लिली, चतुरी-चमार, अप्सरा, अलका, प्रभावती, निरूपमा रचनाएँ हैं।

                             काव्यगत विशेषताएँ
निराला के काव्य में भावपक्ष एवं कलापक्ष से सम्बन्धित विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

                         (अ) भावपक्षीय विशेषताएँ
निराला का भावपक्ष अत्यधिक सबल है। इनके काव्य की भावपक्षीय विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

(1) विद्रोह का स्वर -- निरालाजी अन्य छायावादी कवियों की अपेक्षा कहीं अधिक विद्रोही एवं स्वच्छन्दता-प्रेमी थे। वे जीवनपर्यन्त विद्रोह एवं संघर्ष ही करते रहे। 'अपरा' काव्य में यही प्रवृत्ति मुखरित हुई है-
घन, गर्जन से भर दो वन,
तरू-तरू पादप-पादप-तन।
गरजो, हे मन्द्र, वज्र-स्वर,
थर्राए        भूधर-भूधर।

(2) देश-प्रेम की अभिव्यक्ति -- निरालाजी ने देश के सांस्कृतिक पतन की ओर व्यापकता से संकेत किया है। इनका मत है कि देश के भाग्याकाश को विदेशी शासन के राहु ने अपनी कालिमा से आच्छादित कर रखा है। ये चाहते हैं कि देश का भाग्योदय हो और भारतीय जनता आनन्द-विभोर हो उठे। 'भारतीय वन्दना', 'जागो फिर एक बार', 'तुलसीदास', 'छत्रपति शिवाजी का पत्र' आदि कविताओं में इन्होंने देशभक्ति से परिपूर्ण भाव प्रकट किए हैं।

(3) सामाजिक चेतना -- निरालाजी चाहते थे कि समाज का प्रत्येक प्राणी सुखी हो। 'सरस्वती-वन्दना' में इन्होंने यही भावना प्रकट की है कि मानव-समाज में नवीन शक्तियों का उदय हो और प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्त्तव्य का पालन करे।
दृग-दृग को रंजित कर अंजन भर दो भर।
बिंधें प्राण पंच बाण के भी परिचय-शर।
दृग-दृग की बँधी सुछवि बाँध सचराचर भव।

(4) रहस्य-भावना -- निरालाजी की रचनाओं में रहस्यवादी भावना; जिज्ञासा और कौतूहल के रूप में प्रकट हुई है। 'तुम और मैं' इनकी प्रसिध्द रचना है, जिसमें इनका रहस्यवादी स्वर मुखरित हुआ है-
तुम तुंग हिमालय श्रृंग और मैं चंचल गति सुर सरित।
तुम गंध कुसुम कोमल पराग मैं मृदुल मलय समीर।
तुम स्वेच्छाचारी मुक्त पुष्प मैं प्रकृति-प्रेम-जंजीर।
                               तुम शिव हो मैं हूँ शक्ति॥

(5) प्रकृति-चित्रण -- निरालाजी की कविता के अन्तर्गत प्रकृति-चित्रण का अपना विशिष्ट स्थान रहा है। इनके प्रकृति-सम्बन्धी चित्र बड़े सजीव हैं। निराला ने प्रकृति पर सर्वत्र चेतनता का आरोप किया है। इनकी दृष्टि में बादल, प्रताप, यमुना आदि सभी-कुछ चेतन हैं। सन्ध्या-सुन्दरी का एक चित्र प्रस्तुत है-
दिवसावसान का समय,
मेघमय आसमान से उतर रही है
वह सन्ध्या-सुन्दरी परी-सी
धीरे धीरे धीरे।

(6) रस-योजना

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