जीवन परिचय -- रसखान दिल्ली के पठान सरदार थे। इनका पूरा नाम सैयद इब्राहीम 'रसखान' था। इनके द्वारा रचित 'प्रेम वाटिका' ग्रन्थ से यह संकेत होता है कि ये दिल्ली के राजवंश में उत्पन्न हुए थे और इनका रचना-काल जहाँगीर का राज्य-काल था। इनका जन्म
सन् 1558 ई॰ (सं॰ 1615 वि॰) के लगभग दिल्ली में हुआ था। 'हिन्दी-साहित्य का प्रथम इतिहास' के अनुसार इनका जन्म सन् 1533 ई॰ में पिहानी, जिला हरदोई (उ॰प्र॰) में हुआ था। हरदोई में सैयदों की बस्ती भी है। डॉ॰ नगेन्द्र ने भी अपने 'हिन्दी-साहित्य के इतिहास' में इनका जन्म सन् 1533 ई॰ के आस-पास ही स्वीकार किया है। ऐसा माना जाता है कि इन्होंने दिल्ली में कोई विप्लव होता देखा, जिससे व्यथित होकर ये गोवर्धन चले आये और यहाँ आकर श्रीनाथ की शरणागत हुए। इनकी रचनाओं से यह प्रमाणित होता है कि ये पहले रसिक-प्रेमी थे, बाद में अलौकिक प्रेम की ओर आकृष्ट हुए और कृष्णभक्त बन गये। गोस्वामी बिट्ठलनाथ ने पुष्टिमार्ग में इन्हें दीक्षा प्रदान की थी। इनका अधिकांश जीवन ब्रजभूमि में व्यतीत हुआ। यही कारण है कि ये कंचन धाम को भी वृन्दावन के करील-कुंजों पर न्योछावर करने और अपने अगले जन्मों में ब्रज में शरीर धारण करने की कामना करते थे। कृष्णभक्त कवि रसखान की मृत्यु
सन् 1628 ई॰ (सं॰ 1675 वि॰) के लगभग हुई।
रचनाएँ --
रसखान की निम्नलिखित दो रचनाएँ प्रसिध्द हैं
(1) सुजान रसखान तथा (2) प्रेमवाटिका।
साहित्य में स्थान -- रसखान का स्थान भक्त-कवियों में विशेष महत्वपूर्ण है। इनके बारे में
डॉ॰ विजयेन्द्र स्नातक ने लिखा है कि "इनकी भक्ति ह्रदय की मुक्त साधना है और इनका श्रृंगार वर्णन भावुक ह्रदय की उन्मुक्त अभिव्यक्ति है। इनके काव्य इनके स्वच्छन्द मन के सहज उद्गार हैं।" यही कारण है कि इन्हें स्वच्छन्द काव्य-धारा का प्रवर्तक भी कहा जाता है। इनके काव्य में भावनाओं की तीव्रता, गहनता और तन्मयता को देखकर भारतेन्दु जी ने कहा था-
'इन मुसलमान हरिजनन पै कोटिन हिन्दू वारिये।'
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