रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय - Ramdhari Singh Dinkar Biography In Hindi

रामधारी सिंह 'दिनकर' का 
जीवन परिचय

जीवन परिचय -- श्री रामधारी सिंह 'दिनकर' का जन्म 30 सितम्बर, 1908 ई॰ (संवत् 1965 वि॰) को जिला मुँगेर (बिहार) के सिमरिया नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री रवि सिंह और माता का नाम श्रीमती मनरूप देवी था। इनकी दो वर्ष की अवस्था में ही पिता का देहावसान हो गया; अत: बड़े भाई वसन्त सिंह और माता की छत्रछाया में ही ये बड़े हुए। इनकी आरम्भिक शिक्षा गाँव की पाठशाला में ही हुई। अपने विद्यार्थी जीवन से ही इन्हें आर्थिक कष्ट झेलने पड़े। विद्यालय के लिए घर से पैदल दस मील रोज आना-जाना इनकी विवशता थी। इन्होंने मैट्रिक (हाईस्कूल) की परीक्षा मोकामा घाट स्थित रेलवे हाईस्कूल से उत्तीर्ण की और हिन्दी में सर्वाधिक अंक प्राप्त करके 'भूदेव' स्वर्णपदक जीता। 1932 ई॰ में पटना से इन्होंने बी॰ ए॰ की परीक्षा उत्तीर्ण की।
ग्रामीण परम्पराओं के कारण दिनकर जी का विवाहा किशोरावस्था में ही हो गया। अपने पारिवारिक दायित्वों के प्रति दिनकर जी जीवन भर सचेत रहे और इसी कारण इन्हें कई प्रकार की नौकरी करनी पड़ी। सन् 1932 ई॰ में बी॰ ए॰ करने के बाद ये एक स्कूल में अध्यापक बने। सन् 1934 ई॰ में इस पद को छोड़कर सीतामढ़ी में सब-रजिस्ट्रार बने। सन् 1950 ई॰ में बिहार सरकार ने इन्हें मुजफ्फरपुर के स्नातकोत्तर महाविद्यालय में हिन्दी-विभागाध्यक्ष के पद पर नियुक्त किया। सन् 1952 ई॰ से सन् 1963 ई॰ तक ये राज्यसभा के सदस्य मनोनीत किये गये। इन्हें केन्द्रीय सरकार की हिन्दी-समिति का परामर्शदाता भी बनाया गया। सन् 1964 ई॰ में ये भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति बने। दिनकर जी को कवि-रूप में पर्याप्त सम्मान मिला। 'पद्मभूषण' की उपाधि, 'साहित्य अकादमी' पुरस्कार, द्विवेदी पदक, डी॰ लिट्॰ की मानद उपाधि, राज्यसभा की सदस्यता आदि इनके कृतित्व की राष्ट्र द्वारा स्वीकृति के प्रमाण हैं। सन् 1972 ई॰ में इन्हें 'उर्वशी' के लिए 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' से भी सम्मानित किया गया। इनका स्वर्गवास 24 अप्रैल, 1974 ई॰ (संवत् 2031 वि॰) को मद्रास (चेन्नई) में हुआ।

साहित्यिक योगदान -- दिनकर जी की सबसे प्रमुख विशेषता उनकी परिवर्तनकारी सोच रही है। उनकी कविता का उद्भव छायावाद युग में हुआ और वह प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नयी कविता आदि के युगों से होकर गुजरी। इस दीर्घकाल में जो आरम्भ से अन्त तक उनके काव्य में रही, वह है उनका राष्ट्रीय स्वर। 'दिनकर' जी राष्ट्रीय भावनाओं के ओजस्वी गायक रहे हैं। इन्होंने देशानुराग की भावना से ओत-प्रोत, पीड़ितों के प्रति सहानुभूति की भावना से परिपूर्ण तथा क्रान्ति की भावना जगाने वाली रचनाएँ लिखी हैं। ये लोक के प्रति निष्ठावान, सामाजिक दायित्व के प्रति सजग तथा जनसाधारण के प्रति समर्पित कवि रहे हैं।

                                 कृतियाँ -- 

 रामधारी सिंह दिनकर जी का साहित्य विपुल है, जिसमें काव्य के अतिरिक्त विविध-विषयक गद्य-रचनाएँ भी हैं।
                   
                  इनकी प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार है--

(1) दर्शन एवं संस्कृति -- धर्म, भारतीय संस्कृति की एकता, संस्कृति के चार अध्याय।

(2) निबन्ध-संग्रह -- अर्ध्दनारीश्वर, वट-पीपल, उजली आग, मिट्टी की ओर, रेती के फूल आदि।

(3) आलोचना ग्रन्थ -- शुध्द कविता की खोज।

(4) यात्रा-साहित्य -- देश-विदेश।

(5) बाल-साहित्य -- मिर्च का मजा, सूरज का ब्याह आदि।

(6) काव्य -- रेणुका, हुंकार, रसवन्ती, कुरूक्षेत्र, सामधेनी, प्रणभंग (प्रथम  काव्य-रचना), उर्वशी (महाकाव्य); रश्मिरथी और परशुराम की प्रतीक्षा (खण्डकाव्य)।

(7) शुध्द कविता की खोज -- दिनकर जी का एक आलोचनात्मक ग्रन्थ हैं।


साहित्य में स्थान -- दिनकर जी की सबसे बड़ी विशेषता है, उनका समय के साथ निरन्तर गतिशील रहना। यह उनके क्रान्तिकारी व्यक्तित्व और ज्वलन्त प्रतिभा का परिचायक है। फलत: गुप्त जी के बाद ये ही राष्ट्रकवि पद के सच्चे अधिकारी बने और इन्हें 'युग-चरण', 'राष्ट्रीय-चेतना का वैतालिक' और 'जन-जागरण का अग्रदूत' जैसे विशेषणों से विभूषित किया गया। ये हिन्दी के गौरव हैं, जिन्हें पाकर सचमुच हिन्दी कविता धन्य हुई।

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