मोहन राकेश का जीवन परिचय - Mohan Rakesh Biography In Hindi
जीवन परिचय - श्री मोहन राकेश का जन्म 8 जनवरी, 1925 ई॰ को अमृतसर में हुआ था। इनके पिता श्री करमचन्द गुगलानी पेशे से वकील थे और साहित्य एवं संगीत में विशेष रूचि रखते थे। इन्होंने लाहौर के ओरियण्टल कॉलेज से 'शास्त्री' की परीक्षा उत्तीर्ण करके हिन्दी व संस्कृत में एम॰ ए॰ की परीक्षा उत्तीर्ण की। इन्होंने बम्बई (मुम्बई) ,शिमला,जालन्धर और दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन-कार्य किया, किन्तु शीघ्र ही वे इससे ऊब गये; अत: अध्यापन-कार्य को छोड़कर हिन्दी की कहानी पत्रिका 'सारिका' का सम्पादन कार्य करने लगे, परन्तु कार्यालय की नीरस कार्य-पध्दति से ऊबकर इन्होंने यह कार्य भी छोड़ दिया। सन् 1963 ई॰ से जीवन के अन्त तक स्वतन्त्र-लेखन इनकी जीविकोपार्जन का साधन रहा। इन्हें 'नाटक की भाषा' पर कार्य करने के लिए नेहरू फेलोशिप भी प्राप्त हुई थी, लेकिन 1972 ई॰ में असमय मृत्यु के कारण यह कार्य पूर्ण न हो सका। ये जीवन भर आर्थिक अभावों से जूझते रहे, किन्तु इन्होंने कभी मन के विपरीत कोई समझौता नहीं किया। इनका वैवाहिक जीवन भी टूटता-विखरता रहा। इन्हें नये-नये स्थलों की यात्रा करना बहुत पसन्द था। इनकी रचनाओं में गहन संवेदना व उच्चकोटि की बौध्दिकता विद्यमान है।
साहित्यिक सेवाएँ
राकेश जी ने स्वतन्त्रता के पश्चात् अपने साहित्य में भारतीय मानस के नयी परिस्थितियों में बदले हुए जीवन को भोगने का सर्वप्रथम सफल चित्रण किया। इन्होंने हिन्दी-कहानी को प्राचीन परम्परा से मुक्त कर नयी कहानी के रूप में प्रतिष्ठित किया। इनकी 'नये बादल' कहानी इसी दिशा में सफल प्रयोग है। इन्होंने अपने उपन्यासों में आज के निरन्तर बदलते हुए मानव-जीवन के जटिल द्वन्द्व का यथार्थ अंकन किया है।
मोहन राकेश जी ने यात्रावृत्त नामक विधा को नया स्वरूप और आधार प्रदान किया। इनके 'आखिरी चट्टान तक' नामक यात्रावृत्त में प्रकृति का मार्मिक चित्रण और नये जीवन-मूल्यों की खोज की गयी है। इन्होंने नाटक के क्षेत्र में युगान्तर उपस्थित करके हिन्दी की नयी नाटक विधा को जन्म दिया। प्रसाद जी के बाद हिन्दी नाटक विधा में नये युग का सूत्रपात मोहन राकेश ने ही किया।
कृतियाँ
राकेश जी ने नाटक,उपन्यास,कहानी,यात्रावृत्त,निबन्ध आदि विविध विधाओं पर साहित्य-सृजन किया। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं
(1) उपन्यास -- अन्तराल,अँधेरे बन्द कमरे,न आने वाला कल,नीली रोशनी की बाँहें (अप्रकाशित)।(2) नाटक -- आषाढ़ का एक दिन,लहरों के राजहंस,आधे-अधूरे।
(3) एकांकी -- अण्डे के छिलके,दूध और दाँत (अप्रकाशित)।
(4) अनूदित नाटक -- मृच्छकटिक,शाकुन्तल (अप्रकाशित)।
(5) कहानी-संग्रह -- क्वार्टर,पहचान,वारिस। इन तीनों संग्रहों में कुल 54 कहानियाँ हैं।
(6) यात्रावृत्त -- आखिरी चट्टान तक।
(7) निबन्ध-संग्रह -- परिवेश,बकलमखुद।
(8) जीवनी-संकलन -- समय सारथी।
(9) डायरी -- मोहन राकेश की डायरी।
(10) सम्पादन -- सारिका (हिन्दी मासिक कहानी पत्रिका)।
'आषाढ़ का एक दिन' इनका सुविख्यात नाटक है, जिस पर इन्हें हिन्दी साहित्य अकादमी से पुरूष्कार प्राप्त हुआ।
साहित्य में स्थान
मोहन राकेश जी नयी कहानी के प्रतिष्ठापक, यात्रावृत्त विधा के प्रवर्तक एवं नयी नाटक परम्परा के जन्मदाता माने जाते हैं। वे आज के बदलते हुए जटिल मानव-जीवन के द्वन्द्व का यथार्थ अंकन करने में कुशल हैं। अनेक नवीन विधाओं का प्रवर्तन कर मोहन राकेश जी ने हिन्दी साहित्य को समृध्द किया है। निश्चय ही मोहन राकेश जी स्वतन्त्रता पश्चात् के हिन्दी गद्य-साहित्य के जागरूक व प्रतिभासम्पन्न रचनाकार हैं और हिन्दी-साहित्य को इन जैसा संवेदनशील एवं प्रखर प्रतिभाशाली कोई अन्य लेखक अभी तक नहीं मिल पाया है।

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