गोस्वामी तुलसीदास का जीवन परिचय - Goswami Tulsidas Biography In Hindi
गोस्वामी तुलसीदास जी का जीवन परिचय
जीवन परिचय - गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म सन् 1532 ई॰ (भाद्रपद,शुक्ल पक्ष, एकादशी, सं॰ 1589 वि॰) में बाँदा जिले के राजापुर ग्राम में हुआ था। कुछ विद्वान् इनका जन्म एटा जिले के 'सोरो' ग्राम में मानते हैं। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने राजापुर का ही समर्थन किया। तुलसी सरयूपारीण ब्राह्मण थे। इनके पिता आत्माराम दुबे और माता हुलसी ने अभुक्त मूल नक्षत्र में उत्पन्न होने के कारण इन्हें त्याग दिया था। इनका बचपन अनेकानेक आपदाओं के बीच व्यतीत हुआ। सौभाग्य से इनको बाबा नरहरिदास जैसे गुरू का वरदहस्त प्राप्त हो गया। इन्हीं की कृपा से इनको शास्त्रों के अध्ययन-अनुशीलन का अवसर मिला। स्वामी जी के साथ ही ये काशी आये थे, जहाँ परम विद्वान् महात्मा शेष सनातन जी ने इन्हें वेद-वेदांग,दर्शन,इतिहास,पुराण आदि में निष्णात कर दिया।तुलसी का विवाहा दीनबन्धु पाठक की सुन्दर और विदुषी कन्या रत्नावली से हुआ था। इन्हें अपनी रूपवती पत्नी से अत्यधिक प्रेम था। एक बार पत्नी द्वारा बिना कहे मायके चले जाने पर अर्ध्दरात्रि में आँधी-तूफान का सामना करते हुए ये अपनी ससुराल जा पहुँचे। इस पर पत्नी ने इनकी भर्त्सना की
अस्थि चर्म मय देह मम, तामें ऐसी प्रीति।
तैसी जो श्रीराम महँ, होति न तौ भवभीति॥
अपनी पत्नी की फटकार से तुलसी को वैराग्य हो गया। अनेक तीर्थों का भ्रमण करते हुए ये राम के पवित्र चरित्र का गायन करने लगे। अपनी अधिकांश रचनाएँ इन्होंने चित्रकूट,काशी और अयोध्या में ही लिखी हैं। काशी के असी घाट पर सन् 1623 ई॰ (श्रावण,शुक्ल पक्ष,सप्तमी, सं॰ 1680 वि॰) में इनकी पार्थिव लीला का संवरण हुआ। इनकी मृत्यु के सम्बन्ध में निम्नलिखित दोहा प्रसिध्द हैसंवत् सोलह सौ असी, असी गंग के तीर।
श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी तज्यो शरीर॥
कृतियाँ
तुलसीदास जी द्वारा रचित बारह ग्रन्थ प्रामाणिक माने जाते हैं, जिनमें श्रीरामचरितमानस प्रमुख है। ये अग्रलिखित हैं-(1) श्रीरामचरितमानस, (2) विनयपत्रिका, (3) कवितावली, (4) गीतावली, (5) कृष्ण गीतावली, (6) बरवै रामायण, (7) रामलला नहछू, (8) वैराग्य संदीपनी, (9) जानकी-मंगल, (10) पार्वती-मंगल, (11) दोहावली, (12) रामाज्ञा प्रश्न।
साहित्य में स्थान - गोस्वामी तुलसीदास हिन्दी-साहित्य के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं। इनके द्वारा हिन्दी कविता की सर्वतोमुखी उन्नति हुई। इन्होंने अपने काल के समाज की विसंगतियों पर प्रकाश डालते हुए उनके निराकरण के उपाय सुझाये। साथ ही अनेक मतों और विचारधाराओं में समन्वय स्थापित करके समाज में पुनर्जागरण का मन्त्र फूँका। इसीलिए इन्हें समाज का पथ-प्रदर्शक कवि कहा जाता है। इनके सम्बन्ध में अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' जी ने उचित ही लिखा है
कविता करके तुलसी न लसे ।कविता लसी पा तुलसी की कला ॥

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